Wednesday 24 May 2017

एक सम्राट ने अपने स्वर्णकार को बुलाया

एक सम्राट ने अपने स्वर्णकार को बुलाया, सुनार को बुलाया और
कहा, मेरे लिए एक सोने का छल्ला बना। और उसमें एक ऐसी पंक्ति
लिख दे जो मुझे हर घड़ी में काम आये। दुख हो तो काम आये, सुख हो तो
काम आये। सुनार ने छल्ला तो बनाया, सुंदर छल्ला बनाया हीरा—
जड़ा, लेकिन बड़ी मुश्किल मे पड़ा था कि ऐसा वचन कैसे लिखूं उसमें
जो हर वक्त काम आये? कुछ भी लिखूंगा, वह किसी समय काम आ
सकता है, किसी खास घड़ी में, किसी संदर्भ में। लेकिन हर घड़ी में,
जीवन के हर संदर्भ में काम आये ऐसा वचन कहां से लिखूं, कैसे लिखूं?
वह पागल हुआ जा रहा था। फिर उसे याद आया, एक फकीर गांव में
आया है, उससे पूछ लें। फकीर के पास गया, फकीर ने कहा, इसमें कुछ खास
बात नहीं है। तू जा और इतना लिख दे: 'दिस टू विल पास। यह भी बीत
जायेगा।' और सम्राट को कह देना कि जब भी कोई भी घड़ी हो और
तुम परेशान हो, खुश हो, दुखी हो, इस छल्ले में लिखे वचन को पढ़ लेना,
वह काम पड़ेगा।
और वह काम पड़ा। सम्राट कुछ ही दिनों बाद एक युद्ध में हार गया और
उसे भागना पड़ा। दुश्मन पीछे है, वह एक पहाड़ में जाकर छिप गया है, थर
—थर कांप रहा है। घोड़ों की टाप सुनाई पड़ रही है। बड़ा दुखी है,
जीवन मिट्टी हो गया। क्या सपने देखे थे, क्या से क्या हो गया।
सोचता था, राज्य बड़ा होगा, इसलिए युद्ध में उतरा था। राज्य
अपना था, वह भी गया। जो हाथ का था, वह भी गया उसको पाने में
जो हाथ में नहीं था। बड़ा उदास था, बड़ा चिंतित था। कैसी भूल कर
ली। तभी उसे याद आयी छल्ले की। वचन पड़ा। वचन था कि?यह भी
बीत जायेगा।' मन एकदम हलका हो गया। जैसे बंद कमरे के किवाड़
किसी ने खोल दिये। सूरज की रोशनी भीतर आ गई, ताजी हवा का
झोंका भीतर आ गया। मंत्र की तरह! जैसे अमृत बरसा——'यह भी बीत
जायेगा।'
वह शांत होकर बैठ गया। वह भूल ही गया थोड़ी देर में कि घोड़ों की
टाप कब सुनाई पड़नी बंद हो गई, दुश्मन कब दूर निकल गये। बड़ी देर बाद
उसे याद आयी कि अब तक पहुंचे नहीं।और तीन दिन बाद उसकी फौजें
फिर इकट्ठी हो गई, उन्हों ने फिर हमला किया, वह जीत गया।
वापिस अपनी राजधानी में विजेता की तरह लौटा। बड़ा अकड़ा
था। फूल फेंके जा रहे थे, दुदुंभी बजाई जा रही थी। भारी शोभा—
यात्रा थी। तभी अकड़ के उस क्षण में उसे अपना हीरा चमकता हुआ
दिखाई पड़ा अंगूठी का। उसने फिर वह वचन पढ़ा : 'यह भी बीत
जायेगा।' और चित्त फिर हलका हो गया। जैसे कोई द्वार खुला,
रोशनी भर गई। वह जो अहंकार पकड़. रहा था कि देखो मैं! ऐसा
विजेता था कभी पृथ्वी पर? इतिहास में लिखा जायेगा नाम स्वर्ण
अक्ष—से में, उड़ गया। जैसे सुबह सूरज उगे और घास पर पड़ी ओस की बंद उड़
जाये, ऐसा वह अहंकार उड़ गया। हलका हो गया, फिर वही शांति आ
गई।दुख आता है, जानो कि बीत जायेगा। यहां सभी बीत जाता है।
सुख आता है, बीत जाता है। न दुख में टूटो, न सुख में अकड़ो। न दुख में
उदास हो जाओ, न सुख में फूल जाओ, कुप्पा हो जाओ। सब आता है, सब
जाता है। पानी की धार है, गंगा बहती रहती है।
यहां कुछ थिर नहीं। यहां साक्षी के अतिरिक्त और कुछ भी थिर
नqाईं है। यहां देखनेवाला भर बचता है, और सब बीत जाता है। सुख भी
बीत जाता है, दुख भी बीत जाता है लेकिन जो दुख को जापायेगा
है, सुख को जापायेगा है वह जाननेवाला कभी नहीं बीतता। वह
अनबीता, सदा थिर। उसी की तलाश करनी है। उसको ही जिस दिन
पहचान लोगे, जानना कि उत्तर मिला इस प्रश्न का कि मैं कोन हूं।
और यही एकमात्र' सार्थक प्रश्न है और यही एकमात्र सार्थक खोज ह

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