आज शेरो शायरी का मौसम था सुबह,बाद में तो खैर कहर धूप में मेरे सारे शेर बिलख के मर गये..
सुबह लिखे गये चंद लायंस मुलाइज़ा फरमाएं
--- तुम मुस्कुराती हो तो शूल झड़ते हैं...
तुम मुस्कुराती हो तो शूल झड़ते हैं...
रात को ना हँसा करो सोते में.. मेरे सपने भी डरते हैं...!!
आगे शायर कहता है,
--- इन पैरों की आहट से दिल काँप जाता है
इन पैरों की आहट से दिल काँप जाता है
कि उल्टे पैरों से चलकर जाने कौन आता है !!
अब शायर आगे बढ़ते हुए lion कहता है
-- वह रेशमी सफेद जुल्फ़े तेरी माथे से ना हटा
वह रेशमी सफेद जुल्फ़े तेरी माथे से ना हटा
खूबसूरती देख तेरी, कभी यह फटी कभी वह फटा
अंतिम शेर का पिल्ला मुलाइज़ा फरमाइयेगा की
-- तेरे नाखुन की खरोंच से उठी आह जीने ना देगी
तेरे नाखुन की खरोंच से उठी आह जीने ना देगी
ए भूतनी रुक तो जा पल दो पल, क्या फटे को सीने ना देगी?? !!
आगे मूड और था पर ,घर वालो ने भगा दिया ऑफिस .. आर्टिस्ट लोगो की कदर हिंदुस्तान में नही है.