Tuesday 5 July 2016

hindi poem_ hindi kavita_ मौत इतनी शांत है

जिंदगी मुझे पूछने है तुझसे कुछ खास सवाल
मौत इतनी शांत है और तुझमे क्यू इतने बवाल
इश्क़ क्यों करना सिखाया है मुझे तूने जवाब दे
जिंदगी मैंने कोई जादू किया या है कोई कमाल
जिंदगी में क्यों नहीं तू महजब की दीवारें गिराती
आँख उठाकर देखे हमे फिर किसमे है मजाल
जिंदगी गरीबों के आसूँ तू क्यों नहीं पोछती बता
क्यों सब तुझसे ख़फ़ा क्यों करे जीने का मलाल
झूठ का आवरण सब क्यों यहाँ ओढे फिरते घुमे
क्यों करती तू फिरे यहाँ पर सत्य को ही हलाल
क्यों कोई भगत संग नहीँ बिस्मिलाह नजर आये
शर्मिंदा क्यू राष्ट्र धर्म पर हो भारत माता के लाल
जीवन पथ को क्यों नहीं अलौकिक करती तू
सत्य के पथ पे लेकर के चले क्यों हम मशाल
चन्द टुकड़े किसलिए हावी यहाँ मानवता पर है
कर्तव्य पथ पर जगमगाना मुझे क्या तेरा ख्याल
चले सौ आंधिया भी बुझाने मुझे मासूम दिए को
स्वार्थ की घटा मिटा के क्या रखेगी मुझे संभाल
सरलता का ओढ़ बाना सत्य की राह चलूँगा मैं
काँटों से मेरी जिंदगी तू मुझे देगी क्या निकाल
मेरी प्यारी कलम तुझसे भी करूँ एक सवाल
बिकेगी नहीं चाहे दिखाये कोई लाखों का माल
बन्द कर के चले हम संग तुम्हारे दुकाँ अपनी ही
खत्म हुई कविता शब्दों से हम भी हुए कंगाल
अशोक सपडा की कलम से दिल्ली से

Subscribe

loading...

Ad