Tuesday 27 June 2017

सिंध शहर में एक वैध थे, जिनका मकान भी बहुत पुराना था।

सिंध शहर में एक वैध थे, जिनका मकान भी बहुत पुराना था।

वैध साहब अपनी पत्नी को कहते कि जो तुम्हें चाहिए एक चिठ्ठी में लिख दो दुकान पर आकर पहले वह चिठ्ठी खोलते। सामान के भाव देखते, फिर भगवान से प्रार्थना करते कि हे मेरे भगवान !
मैं केवल तेरे ही हुक्म से तेरी सेवा छोड़कर यहाँ दुनिया में आ बैठा हूँ।
तूँ मेरी आज की व्यवस्था कर देगा। उसी समय यहां से उठ जाऊँगा और फिर कभी सुबह साढ़े नौ, कभी दस बजे वैध साहब रोगियों की दवा देकर कर वापस अपने गांव चले जाते।

एक दिन वैध साहब ने दुकान खोली।फिर चिठ्ठी खोली तो देखते ही रह गए।
एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आंखों के सामने तारे चमकते हुए नजर आ गए लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने मन पर काबू पा लिया।
आटे दाल चावल आदि के बाद धर्मपत्नी ने लिखा था, बेटी के दहेज का सामान लाना है जी
कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की कीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा *'' यह काम भगवान का है, भगवान ही जाने।''*
एक दो मरीज आए थे। उन्हें वैध साहब दवाई दे रहे थे।
इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दुकान के सामने आकर रुकी

दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह साहब कार से बाहर निकले और राम राम करके बैंच पर बैठ गए। वैध साहब ने कहा कि अगर आप अपने लिए दवा लेनी है तो, आपकी नाड़ी देख लूँ हकीम साहब मुझे लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं ?
मैं 15-16 साल बाद आप की दुकान पे आया हूँ
आप को पिछली मुलाकात की बात सुनाता हूँ फिर शायद आपको सारी बात याद आ जाएगी ।

वैध साहब मैं 5,6 साल से दूसरे गांव में रहता हूँ। गांव जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चा नह़ीं हुआ। यहां भी इलाज किया और गांव में भी करवाया लेकिन हमारी किस्मत में शायद बच्चा नहीं था आपने कहा, मेरे भाई! तौबा करो और अपने भगवान से निराश ना हो
याद रखो ! उसके खज़ाने में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। औलाद, माल, धन दौलत और खुशी ग़मी जीवन मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है।

किसी वैध या डॉक्टर के हाथ में कुछ भी नहीं है । अगर औलाद होनी है तो भगवान की मरजी से ही होनी है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है तुम बातें करते जा रहे थे और साथ साथ, पुड़ियाँ भी बना रहे थे। फिर आपने मुझसे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है? मैंने बताया कि मेरा नाम रमेश है। आपने एक लिफाफे पर रमेश साहब और दूसरे पर श्रीमती रमेश लिखा। फिर दवा लेने का तरीका बताया।
लेकिन जब मैंने पूछा कितने पैसे?
आपने कहा बस ठीक है। मैंने जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है।
मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई।
भाई आज के घर खर्च के लिए जितनी रकम वैध साहब ने भगवान से मांगी थी वह भगवान ने इनको दे दी है।
अधिक पैसे वे नहीं ले सकते। मैं बहुत हैरान हुआ और शर्मिंदा भी हुआ कि मेरे कितने घटिया विचार थे और यह वैध कितना महान व्यक्ति है।
मैंने जब घर जा कर घर वाली को दवा दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई भगवान के रूप में देवता है और उसकी दी हुई दवा हमारे मन की ईछा ज़रूर पूरी करेगी जी
वैध साहब आज मेरे घर में तीन बच्चे हैं।
मैं और मेरी घर वाली हर समय आपके लिए प्रार्थना करते हैं।
जब भी छुट्टी में आया। कार उधर रोकी लेकिन दुकान को बंद पाया। कल दोपहर भी आया था दुकान बंद थी। एक आदमी पास ही खड़ा हुआ था। उसने कहा कि अगर आप वैध साहब से मिलना है तो सुबह 9 बजे अवश्य पहुंच जाएं वरना उनके मिलने की कोई गारंटी नहीं। इसलिए आज सवेरे सवेरे आपके पास आया हूँ।

वैध साहब हमारा सारा परिवार गांव में बस चुका है। केवल एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ आप के शहर में रहती है।
हमारी भांजी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी थी। इस भांजी की शादी का सारा खर्च मैं अपने ज़िम्मा लिया था। 10 दिन पहले इसी कार में उसे मैं बाजार अपने रिश्तेदारों के साथ भेजा कि शादी के लिए जो चीज़ चाहे खरीद ले। उसे बाजार जाते ही बुखार हो गया लेकिन उसने किसी को नहीं बताया। बुखार की दवा खाती रही और बाजारों में फिरती रही। बाजार में फिरते फिरते अचानक बेहोश होकर गिरी। उसे अस्पताल ले गए। वह बेचारी इस दुनिया से चली गयी

इसके मरते ही न जाने क्यों मुझे और मेरी पत्नी को आपकी बेटी का ख्याल आया। हम ने और हमारे सभी परिवार ने फैसला किया है कि हम अपनी भांजी के सभी दहेज का साज़-सामान आपके यहां पहुंचा देंगे। शादी जल्दी है तो इन्तज़ाम खुद करेंगे और अगर अभी कुछ देर है तो सभी खर्चों के लिए पैसा आप को नकदी पहुंचा देंगे। आप कृपा करके मना मत करना।
अपना घर दिखा दें ताकि सारा सामान वहाँ पहुंचाया जा सके।

वैध साहब हैरान-परेशान हुए बोले '' रमेश भाई साहिब आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा, मेरा इतना मन नहीं है। मैं तो आज सुबह जब पत्नी के हाथ की लिखी हुई चिठ्ठी यहाँ आकर खोलकर देखा तो मिर्च मसाला के बाद जब मैंने ये शब्द पढ़े '' बेटी के दहेज का सामान '' तो तुम्हें पता है मैं क्या लिखा। आप खुद यह चिठ्ठी जरा देखें। रमेश साहब यह देखकर हैरान रह गए कि '' बेटी के दहेज '' के सामने लिखा हुआ था *'' यह काम भगवान का हे, भगवान जाने।''*
रमेशसाहब, यकीन करो आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि पत्नी ने चिठ्ठी पर बात लिखी हो और भगवान ने उसका उसी दिन व्यवस्था न कर दिया हो।
वाह मेरे भगवान वाह। तू महान है तू राम तू कृष्ण है तू मां काली है तू मेरा सद्गुरु भगवान है है। आपकी भांजी की मौत का मुझे सदमा है, अफसोस है लेकिन मैं भगवान की रहमत से हैरान हूँ कि वे कैसे अपने काम दिखाता है।
वैधसाहब ने कहा जब से होश संभाला है, मैंने बस एक ही पाठ पढ़ा है शुक्र है, मेरे भगवान तेरा शुक्र है।


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