Tuesday 27 June 2017

Remains of the Day

Remains of the Day 
कुछ तो बाक़ी रह जाता है हर रोज़ 
रोज़ जो गुज़रता है
दिन के जलने से रात के बुझने तक

कुछ अधखुले दरवाज़ों पर अनकही दस्तकें
रोज़ रह जाती हैं कदमों की आहटें
एक आस जो टूटे न बिखरे

कुछ परिंदों के सफर के अफ़साने 
रोज़ परिंदों के सफर न खत्म हों
न अफ़साने कभी भस्म हों

कुछ आँसू बिन बहे सिमटे रहें
रोज़ एक नमी सी रहे आँखों में 
एक तबससुम सा रहे होठों पर

कुछ मोहब्बतें मिलें हर रोज़ 
रोज़ कुछ बहुत सी रुसवाईयां भी 
कुछ किस्मत से मिली बेहिस सी तनहाईयां भी

कुछ मसले न सुलझे न उलझें
रोज़ एक सपना बुनें 
हर रोज़ उसको तोड़ दें

कुछ तुमको रोज़ भूल कर 
रोज़ थोड़ा थोड़ा याद करें
यादों के आईने की धूल को हर रोज़ थोड़ा सा साफ करें

कुछ इरादे करें बहुत से वादे भी 
रोज़ जिंदगी से जूझें लड़ें 
फिर हत्यार फेंक उसकी गोद में सो रहें

कुछ काम रोज़ शुरु करें
रोज़ अधूरा छोड़ दें
फिर अधूरे सबकी गठरी बांध दरिया में बहा दें

सब कुछ खत्म करके भी 
कुछ तो बाक़ी रह जाता है हर रोज़ 
हर रोज़ जो गुज़रता है 
दिन के जलने से रात के बुझने तक

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