मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही,
कि चाहे VAT हो या GST, जब भरती जनता है, भुगतती जनता है, तो व्यापारी को गुस्सा किस बात का?
कपड़ा महंगा हो गया, किराना महंगा हो गया.....तो क्या??
व्यापारी को तो बेचना है!! जो भाव वह खरीदेगा, उससे ज्यादा में ही बेचेगा न।
व्यापारियों का गुस्सा इस बात का है उनकी चोर बाज़ारी बन्द हो जाएगी। ना पक्के बिल से कभी माल ख़रीदा, ना कभी पक्के बिल से बेचा। फ़र्ज़ी फ़ाइल बना के लाखों का टैक्स बचा लिया। कौन नही जानता कि ये छोटे छोटे व्यापारी भी सालाना 50-60 लाख का टर्न ओवर कर लेते हैं, पर फ़ाइल 5 लाख से आगे बढ़ती ही नही।
अब कानून के दायरे में आने लग गए तो हड़ताल याद आई है। थोड़े दिन पहले jewellers ने भी हड़ताल की थी।
बस देश से लेना आता है। देने के नाम पर हड़ताल।
ज़रा सोचिए, ये हड़ताल किसे करनी चाहिए।
आम जनता को, जो टैक्स भरती है, या व्यापारी को??