Wednesday, 7 June 2017

Hindi Poem - मेरी रुह को छूकर देखिए

मेरी रुह को छूकर देखिए गुजर रहा है कोई ।
आज फिर दर्द की लहरों से भर रहा है कोई ।
आइए देखिए ना आप इन बंद मकानों में जरा ।
किस कदर छुप के अंधेरे में बिखर रहा है कोई ।
अजीब बात है आफताब भी खो गया है कहीं ।
आज खुद अपने ही साये से डर रहा है कोई ।
अब तो रहने दें इस सितम की इंतहां न करें ।
गिन के सांसें बहुत खामोश मर रहा है कोई ।
मैंने इस घर को जलाया कि रौशनी हो 'विनय ' ।
चिता की आग में देखिए निखर रहा है कोई ।


'विनय ' ।

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