पैग़म्बर मुहम्मद एक दिन सुबह की नमाज़ पढ़ने मस्जिद गए.. साथ में एक आदमी था जो दो दिन पहले ही मुसलमान बना था.. गर्मियों के दिन थे और लोग अपने घरों के बाहर चारपाई डाल कर गहरी नींद में सो रहे थे.. नमाज़ से वापस आते वक़्त उस आदमी ने जब लोगों को ऐसे सोते हुवे देखा तो मुहम्मद साहब से कहा "देखिये रसूल, ये कैसे गुनाहगार लोग हैं जो पड़े सो रहे हैं और इन्होने सुबह की नमाज़ भी न पढ़ी"
उसकी बातें सुनकर पैगम्बर ठिठक गए और चुपचाप खड़े हो गए.. फिर उस आदमी से बोले "तुम अपने घर जाओ, और मैं मस्जिद वापस जा रहा हूँ फिर से नमाज़ पढने.. क्यूंकि मुझे लगता है कि मेरी नमाज़ तुम्हारे साथ पढने से कुबूल नहीं हुई होगी"
फिर आगे उन्होंने कहा "तुम आज पहली बार नमाज़ पढने आये हो और तुम्हे आज ही सारी दुनिया गुनाहगार लगने लगी है.. इसलिए अब तुम तब आना वापस नमाज़ पढने जब तुमको ये सब गुनाहगार दिखने बंद हो जाएँ और सिर्फ अपने गुनाह नज़र आने लगें"
मेरे गुरु अक्सर इस घटना को मुझे सुनाते थे और बार बार सुनाते थे ताकि मुझे याद रहे ये.. तसव्वुफ़ (सुफ़िस्म, रहस्यवाद) का मूल ही है प्रकृति के साथ एकाकार होना.. जो कुछ भी जैसा है उसे वैसा स्वीकार करना.. कोई ऐसी मान्यता जिसमे इंसानियत का कोई नुक्सान नहीं हो रहा है वो मेरे लिए पूरी तरह से स्वीकार्य है.. सूफ़ी अल्लाह के ठेकेदार नहीं होते हैं.. उनके लिए मीरा भी अल्लाह वाली होती है और कृष्ण भी.. रूमी का नाचना भी इबादत में आता है, मीरा का भजन भी, और किसी आम इंसान का नमाज़ पढना भी
मेरे गुरु ने मुझे समझाया था कि "गुनाह (पाप) सिर्फ वो होता है जिसमे किसी का दिल दुखे.. सिर्फ हिंसा ही गुनाह है इस दुनिया में और कुछ नहीं.. इसके अलावा कुछ भी गुनाह नहीं होता है.. विभिन्न संस्कार और विभिन्न संस्कृतियों में बहुत सी चीज़ें गुनाह के तौर पर ली जाती हैं मगर वही दूसरी सभ्यता में मान्य होती हैं.. इसलिए हिंसा से बचना बस चाहे वो किसी भी रूप में हो.. क्यूंकि वही गुनाह है"
~ताबिश
Sabhar: ~ताबिश