Tuesday, 27 June 2017

एक वर्ष! कौन हिसाब करे,

एक वर्ष!
कौन हिसाब करे, 
कि तने दिन, कितने घंटे, या
समय की और परिसीमाएं ,
हां बस याद है मुझे,
वो एक वर्ष !
जब मिले थे,
तुम और हम,
और जन्म लिया था एक कविता ने,
मेरे अंतस में कहीं ,
और डूब गया मैं उस कविता के छंदों में,
उस वर्ष !
बदल गयी थी जिंदगी मेरी, 
बदल गयीं ख्वहिशें जिंदगी की,
खत्म हो गये गिले शिकवे जिंदगी से,
तुम हो बस ये यकीं बहुत था,
आशाओं की किरणों से नहा उठा था,
वह एक वर्ष!
लोग कहते हैं ,
प्रेम में नहीं होतीं उम्र की सीमाएं,
जाति और धर्म के बंधन ,
प्रेम तो बस प्रेम है,
इसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता,
इसीलिए तो शायद लिखी थी मैंने,
प्रेम की एक कविता,
उस वर्ष !

Copied from Social Media Sites :)

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