Tuesday, 27 June 2017

तुम भारतीय नहीं हो!

तुम भारतीय नहीं हो!
परंतु तुम्हारा मन,
जो मैंने देखा है,
भारतीय परम्पराओं की तरह
पवित्र और करुणामय है,
तुम आनंद स्रोत की तरह हो,
मगर तुम भारतीय नहीं हो !
तुम नहीं जानती जाति और धर्म की वितृष्णाएं,
तोड़ती हो तुम भेद की सीमाएं ,
भरी हो प्रेम की सम्भावनाओं से,
पुरुष घृणा का पात्र नहीं तुम्हारे लिए,
स्नेहिल मन से बस प्रेम करती हो,
मगर तुम भारतीय नहीं हो ।
गुण है तुममें नारीत्व का,
जानती हो अर्थ जीवन का,
देख पाती हो जीवन के अनंत विस्तार को,
अपने कर्तव्य पथ पर चलती हुई,
तुम सीता भी हो सावित्री भी हो,
मगर तुम भारतीय नहीं हो ।

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