Thursday, 11 May 2017

Hindi Poem - प्रेम!

प्रेम!
आकाश के अनंत विस्तार को,
अपनी मुट्ठी में बंद कर,
जीवन को आप्लावित कर देता है,
समग्र पूर्णता से,
और तोड़ कर सभी बंधन,
आत्मा को मुक्त कर देता है,
प्रेम !
सागर की असीम गहराई की भांति,
सीमाहीन है,
जिसमें डूबा मन किसी की याद को,
मन की अतल गहराइयों में छुपाकर,
सागर की तरह ही,
एकांत प्रिय हो उठता है ।
प्रेम ! 
किसी का स्नेहासिक्त स्पर्श,
किसी तपते हृदय को छूकर,
किसी ठंडी, उन्मादित हवा की तरह,
रुह से गुजरता है,
और जीवन में,
बहार भर देता है ।
प्रेम!
पवित्र है परमात्मा की तरह,
सुंदर है प्रकृति की क्रीड़ा की तरह,
उत्पन्न होता है,
मानव मन की जिजीविषा से,
और देवत्व में ,
विलीन हो जाता है !


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