Thursday, 11 May 2017

Hindi Poem - हां मैंने देखा है!

मैंने देखा है ! 
एक बीमार औरत के सिरहाने खड़े,
अपनी आंखों में कांपते आंसुओं को छिपाते,
एक पुरुष को,
जो औरत के हाथों को पकड़कर ,
दवा न खाने पर उसे डांटता है ।
मैंने देखा है!
औरत के पपड़ियाये होंठों को देखकर,
एक गुस्सैल पुरुष को नाराज होते हुए,
जो न जाने क्या बडबड़ाते हुए,
उससे जाकर कुछ खाने के लिए,
कहता है ।
हां मैंने देखा है!
खेतों में काम करती एक औरत,
और उसका हाथ पकड़े एक पुरुष को,
जो उसके हाथों में चुभी पिनकियों को,
अपने होंठों से,
निकालता है ।
मैंने देखा है !
भूख से कुलबुलाती अपनी आंतों को,
अंगोछे से बांधकर,
अहंकार से भरे एक पुरुष को कहते,
जा तू खा ले,
अभी मेरे पेट में थोड़ा दर्द है ।
मैंने देखा है!
जिंदगी में तिर आई उदासी को,
दूर करने के लिएआपस में लड़ते,
एक पुरुष और औरत को,
जिनकी आंखें दाम्पत्य की ,
गरिमा से चमकती हैं ।
तुमने कहां देखा ?
पुरुष नारी का शोषण करता,
जो नारी का शोषक है वह पुरुष नहीं होता,
सब कुछ तो बांट दिया अब अस्तित्व तो मत बांटो,
पुरुष अगर है जीवन औरत का,
तो नारी पुरुष की आत्मा है,
हां मैंने देखा है!

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