प्रजातंत्र का यह नाटक,
कब तक खेला जाएगा ।
रखो यकीन आखिर एक दिन ,
सब कुछ ही जल जाएगा ।
कब तक विष विषमता का,
पीयेगा कोई नौजवान ।
एक दिन अपने हाथों में,
वह भी शस्त्र उठायेगा ।
जाति, वर्ग और धर्मों में,
तुमने देश को बांट दिया ।
आखिर एक दिन ये बाजीगर,
अपना खेल दिखायेगा ।
आरक्षण की बलिवेदी पर,
तुमने ग्यान को मार दिया ।
लेकिन जब यह अग्नि प्रखर होगी,
कोई बच ना पायेगा ।
पुरुषत्व हीन है राजनीति,
है न्याय कहीं भी नहीं यहां ।
ठहरो जल्दी ही महाकाल,
फिर अपना शंख बजाएगा ।
स्नान करेगी पृथ्वी यह,
फिर रक्त कुंड के सागर में ।
महाप्रलय की आंधी से,
यह कुटिल तंत्र मिट जाएगा ।
कब तक खेला जाएगा ।
रखो यकीन आखिर एक दिन ,
सब कुछ ही जल जाएगा ।
कब तक विष विषमता का,
पीयेगा कोई नौजवान ।
एक दिन अपने हाथों में,
वह भी शस्त्र उठायेगा ।
जाति, वर्ग और धर्मों में,
तुमने देश को बांट दिया ।
आखिर एक दिन ये बाजीगर,
अपना खेल दिखायेगा ।
आरक्षण की बलिवेदी पर,
तुमने ग्यान को मार दिया ।
लेकिन जब यह अग्नि प्रखर होगी,
कोई बच ना पायेगा ।
पुरुषत्व हीन है राजनीति,
है न्याय कहीं भी नहीं यहां ।
ठहरो जल्दी ही महाकाल,
फिर अपना शंख बजाएगा ।
स्नान करेगी पृथ्वी यह,
फिर रक्त कुंड के सागर में ।
महाप्रलय की आंधी से,
यह कुटिल तंत्र मिट जाएगा ।