रिश्तों के रंग
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राधिका अपने पति के तबादले के बाद पहली बार दिल्ली आयी थी। पांच महीने की गर्भवती और पांच साल के एक बच्चे की माँ राधिका के लिए बिना किसी कामवाली की मदद के घर को संभालना मुश्किल हो रहा था।
उसने अपने पड़ोसियों से बात की तो एक ने अपनी कामवाली कंचन को उसके घर भेज दिया।
कंचन ने राधिका से सारा काम समझ लिया और काम में लग गयी।
कंचन को देख राधिका के बेटे हर्ष ने पूछा- माँ ये कौन है?
राधिका ने कहा- ये आंटी मम्मा की मदद करने आई है घर के काम में।
अगले दिन जब कंचन राधिका के घर पहुँची तो हर्ष ने उसे देखकर कहा- मम्मा कामवाली आ गयी।
राधिका ने हर्ष को समझाया- ऐसा नही कहते बेटे। वो तुमसे बड़ी है। बड़ो को इज्जत देते है।
कंचन ने कहा- भाभी, बबुआ ठीक तो कह रहे है।
राधिका ने उसे चुप रहने का इशारा कर हर्ष से कहा- हर्ष बेटे, कंचन बुआ को सॉरी बोलो।
हर्ष सॉरी बुआ बोलकर खेलने में मगन हो गया।
इस घटना ने कंचन के दिल में राधिका के प्रति सम्मान का भाव जगा दिया। वो हर वक्त राधिका के हर काम, हर मदद के लिए मौजूद रहती थी।
एक दिन दोपहर में कुछ काम करते हुए राधिका अचानक बेहोश हो गयी। नन्हा हर्ष परेशान हो गया। उसे कुछ समझ नही आ रहा था।
हर्ष भागकर गया और बगल वाले घर की घंटी बजाई। दोपहर की नींद खराब होने से उस घर की मालकिन गुस्से में बाहर निकली। हर्ष की बात सुनकर उसने कहा- तो मैं क्या करूँ? जाओ गली के कोने से जाकर कंचन को बुलाओ।
कंचन हर्ष की बात सुन उसे गोद में लिए दौड़ती हुई राधिका के पास पहुँची और उसे जल्दी से अस्पताल ले गई।
उस दिन से कंचन मानों उनके परिवार का ही हिस्सा बन गयी।
सही वक्त पर राधिका ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया।
इस खुशी में विनीत ने घर में छोटा सा कार्यक्रम रखा और पास के शहर में रहने वाली अपनी बहन को भी न्योता दिया लेकिन उसने ये कहक़र आने से मना कर दिया कि भैया नेग में ज्यादा से ज्यादा क्या दे पाएंगे एक मामूली सी साड़ी। उसके लिए इतना खर्च करके जाना फिजूल है।
तब कंचन ने खुशी-खुशी बुआ द्वारा की जाने वाली रस्मों को पूरा किया।
कुछ ही वक्त के बाद विनीत को तरक्की मिली और उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो गयी और वो अपने खुद के घर में आ गए। कंचन हर जगह उनके साथ बनी रही।
वक्त पंख लगकर उड़ता गया।
आज विनीत और राधिका की बेटी रावि की शादी थी।
सारे नाते-रिश्तेदार आये हुए थे जिनमें विनीत की बहन भी थी।
विनीत की बहन खुशी से चहकते हुए बोली- भैया इकलौती भतीजी है तगड़ा नेग लूंगी मैं तो हर रस्म में।
तभी राधिका ने कंचन को आवाज़ दी और कहा- रावि की शादी की रस्म भी उसकी वही बुआ करेगी जिसने जन्म के वक्त अपना रिश्ता निभाया।
कंचन ने कहा- नहीं, नहीं भाभी, हम छोटे लोगों की आपसे क्या बराबरी।
विनीत आगे आया और कहा- कंचन, राधिका ठीक कह रही है। छोटे तो वो लोग होते है जो रिश्तों को मोल-भाव की नज़र से देखते है।
अब कंचन ना नही कह सकी। उसकी आँखों में खुशी के आंसू आ गए थे।
तभी रावि बोल उठी- बुआ आंसू विदाई के लिए रखो। अभी मुस्कुराते हुए आओ वर्ना फ़ोटो खराब हो जाएगी।
ये सुनकर सब तनाव को भूल हंस पड़े और रस्में शुरू हो गयी।
विनीत की बहन चुपचाप अपने घर के लिए रवाना हो गयी।
रिश्तों के खूबसूरत रंग ने आज विनीत और राधिका के घर-आंगन को अलग ही रंग में रंग दिया था, जिसकी चमक अब कभी फीकी नही पड़ने वाली थी।
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राधिका अपने पति के तबादले के बाद पहली बार दिल्ली आयी थी। पांच महीने की गर्भवती और पांच साल के एक बच्चे की माँ राधिका के लिए बिना किसी कामवाली की मदद के घर को संभालना मुश्किल हो रहा था।
उसने अपने पड़ोसियों से बात की तो एक ने अपनी कामवाली कंचन को उसके घर भेज दिया।
कंचन ने राधिका से सारा काम समझ लिया और काम में लग गयी।
कंचन को देख राधिका के बेटे हर्ष ने पूछा- माँ ये कौन है?
राधिका ने कहा- ये आंटी मम्मा की मदद करने आई है घर के काम में।
अगले दिन जब कंचन राधिका के घर पहुँची तो हर्ष ने उसे देखकर कहा- मम्मा कामवाली आ गयी।
राधिका ने हर्ष को समझाया- ऐसा नही कहते बेटे। वो तुमसे बड़ी है। बड़ो को इज्जत देते है।
कंचन ने कहा- भाभी, बबुआ ठीक तो कह रहे है।
राधिका ने उसे चुप रहने का इशारा कर हर्ष से कहा- हर्ष बेटे, कंचन बुआ को सॉरी बोलो।
हर्ष सॉरी बुआ बोलकर खेलने में मगन हो गया।
इस घटना ने कंचन के दिल में राधिका के प्रति सम्मान का भाव जगा दिया। वो हर वक्त राधिका के हर काम, हर मदद के लिए मौजूद रहती थी।
एक दिन दोपहर में कुछ काम करते हुए राधिका अचानक बेहोश हो गयी। नन्हा हर्ष परेशान हो गया। उसे कुछ समझ नही आ रहा था।
हर्ष भागकर गया और बगल वाले घर की घंटी बजाई। दोपहर की नींद खराब होने से उस घर की मालकिन गुस्से में बाहर निकली। हर्ष की बात सुनकर उसने कहा- तो मैं क्या करूँ? जाओ गली के कोने से जाकर कंचन को बुलाओ।
कंचन हर्ष की बात सुन उसे गोद में लिए दौड़ती हुई राधिका के पास पहुँची और उसे जल्दी से अस्पताल ले गई।
उस दिन से कंचन मानों उनके परिवार का ही हिस्सा बन गयी।
सही वक्त पर राधिका ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया।
इस खुशी में विनीत ने घर में छोटा सा कार्यक्रम रखा और पास के शहर में रहने वाली अपनी बहन को भी न्योता दिया लेकिन उसने ये कहक़र आने से मना कर दिया कि भैया नेग में ज्यादा से ज्यादा क्या दे पाएंगे एक मामूली सी साड़ी। उसके लिए इतना खर्च करके जाना फिजूल है।
तब कंचन ने खुशी-खुशी बुआ द्वारा की जाने वाली रस्मों को पूरा किया।
कुछ ही वक्त के बाद विनीत को तरक्की मिली और उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो गयी और वो अपने खुद के घर में आ गए। कंचन हर जगह उनके साथ बनी रही।
वक्त पंख लगकर उड़ता गया।
आज विनीत और राधिका की बेटी रावि की शादी थी।
सारे नाते-रिश्तेदार आये हुए थे जिनमें विनीत की बहन भी थी।
विनीत की बहन खुशी से चहकते हुए बोली- भैया इकलौती भतीजी है तगड़ा नेग लूंगी मैं तो हर रस्म में।
तभी राधिका ने कंचन को आवाज़ दी और कहा- रावि की शादी की रस्म भी उसकी वही बुआ करेगी जिसने जन्म के वक्त अपना रिश्ता निभाया।
कंचन ने कहा- नहीं, नहीं भाभी, हम छोटे लोगों की आपसे क्या बराबरी।
विनीत आगे आया और कहा- कंचन, राधिका ठीक कह रही है। छोटे तो वो लोग होते है जो रिश्तों को मोल-भाव की नज़र से देखते है।
अब कंचन ना नही कह सकी। उसकी आँखों में खुशी के आंसू आ गए थे।
तभी रावि बोल उठी- बुआ आंसू विदाई के लिए रखो। अभी मुस्कुराते हुए आओ वर्ना फ़ोटो खराब हो जाएगी।
ये सुनकर सब तनाव को भूल हंस पड़े और रस्में शुरू हो गयी।
विनीत की बहन चुपचाप अपने घर के लिए रवाना हो गयी।
रिश्तों के खूबसूरत रंग ने आज विनीत और राधिका के घर-आंगन को अलग ही रंग में रंग दिया था, जिसकी चमक अब कभी फीकी नही पड़ने वाली थी।
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