बचपन में एक बार का किस्सा याद आ गया... मुहल्ले के ही एक हमउम्र लड़के को देखा था, जो डंडी में अपनी पैंट फंसाये जा रहा था। किसी ने पूछा कि पैंट में क्या हुआ तो शर्मिंदा सी आवाज में बस इतना कहा कि 'दस्त' हो गये।
बाद में उसके दोस्तों से पता चला कि बगिया में बकरी के साथ कुकर्म कर रहे थे बच्चू, कि बकरी ने पोक दिया और पैंट की छीछालेदर हो गयी।
कहने का अर्थ यह कि मऊ वाला केशव उपाध्याय कोई पहला एसा बंदा नहीं जो इस 'कांड' में लिप्त हो... इससे पहले एक 'मियाँ जी' भी इसी प्रक्रिया में वायरल हो चुके हैं और इन पंडी जी ने बस बराबरी करके ही दिखाई है।
सच तो यह है कि गांवों, मजरों, कस्बों और उन छोटे शहरों में भी, जहां बकरियां पाली जाती हैं, यह मानवीय कुंठा निकाली जाती रही है। हर जगह सेक्स पार्टनर या पेड सेक्स नहीं उपलब्ध होता तो कई जगहों और मौकों पर यह हवस बकरियां अपने शरीर पर झेलती रही हैं, लेकिन चूँकि वे बोल बता नहीं सकतीं तो यह चीजें सामने नहीं आ पातीं।
तो लब्बोलुआब यह कि जो बलात्कार के लिये लड़कियों की उन्मुक्तता और उनके पहनावे में दोष तलाशते हैं, उन्हें गौर करना चाहिये कि जो छोटी-छोटी बच्चियां इस मर्दानी हवस का शिकार होती हैं, वे न प्रगतिशील आधुनिकायें होती हैं और न कम/छोटे कपड़े पहन कर बेपर्दगी करने वाली लड़कियाँ और न इस हवस का शिकार होने वाली बकरियां आपके 'बलात्कार' के इन पैमानों पर खरी उतरती हैं।
बलात्कार मर्द की मानसिकता में होता है, उसका सीधा विरोध कीजिये, बजाय लड़कियों पर किसी भी बहाने से दोष मढ़ने के।